औरत कभी तवायफ नही होती
बेबसी मजबूर करती है ,
किसी को क्या पता ?
उसकी मुस्कान ,
एक पल में,
कितने आंसू पीती है ।
उसने , वही किया जो चाहा
किंतु , वह कभी नही हुआ
जो चाहा ।
उसके अरमान बादलों से
घुमड़ते हैं ,
तूफानों की उथल -पुथल
विनाश कर जाते हैं ।
जिन ख्वावों को
उम्र भर देखती रही वो ,
उसका होने से पहले ही
चुरा ले गया कोई ।
आग के पास
बुलाता था , बड़ी आरजुओं से
जब जलने लगा दामन
तो , बुझाया भी नही ।
विदाई न लो मुझसे
जुदाई का आलम पता है मुझे ,
इसीलिए चाहती हूँ मैं,
विदा कर दो मुझे ।
विद्या शर्मा ....
1 comment:
वाह ! क्या बात है !! विदाई लेने और देने में क्या फर्क है ये वही जान सकता है जो कभी इन दोनों हालत से गुजरा हो . बहुत अच्छा लिखा है . लेखिका को बधाई और हाँ इतनी खूबसूरती से ब्लॉग पर पेश करने के लिए आपको भी बधाई . ये गुर मुझे भी सिखाइए
Post a Comment