उद्धव ने गोपियों को
जब ज्ञान दिया
निराकार का ,
तब , गोपियाँ उद्धव पर
बरस पड़ीं थीं ।
उसी प्रकार
यमुना !!
तुम भी ,
कृष्ण के वियोग में
उफान रही हो ।
अपनी व्यथा को
उफनते झागों के मध्यम से
कृष्ण तक ,
पहुँचाना चाहती हो ।
बीच -बीच में पड़ते भंवर
तुम्हारी तड़फ का
वर्णन कर ही देंगे ।
गोपियों की तरह
तुम्हें भी ,
किसी माध्यम की जरूरत नही है ।
क्योंकि ,
यह बरसात ही
तुम्हारी व्यथा की गाथा
कहने में मदद कर रही हैं ।
किनारों पर
यहाँ -वहाँ पड़ा भाग
देखकर ही ,
कृष्ण समझ जायेंगे
कि तुमने उनके
वियोग में ,
कितनी विकलता
सहन की है
और ,
सर्द आहें भरीं हैं ।
कृष्ण तो ,
भंवरों को देखते ही
जान जायेंगे तुम्हारी ,
बेकली को ,
तड़पन , विरह और मिलन की
आतुरता का अहसास
कर ही लेंगे ।
पर , यह
जेठ की तपन
ऊपर से
वियोग की अगन
और गर्म आहों ने
तुम्हें , इतना
कृशकाय बना दिया है ।
किनारों पर पड़ी
रेत ही बता देगी
कि तुम ,
कृष्ण के वियोग में
कितनी सूख गई हो ।
तुम्हारी इठलाती
बलखाती देह
कभी ,
कदम की डाली
छूने को लालाइत होती थी ,
उठती गिरती लहरों से
जब तुम कृष्ण को
रिझातीं थीं ।
तब , राधा
डर जाती थी ,
राधा को बहा ले जाने की
कोशिश में
तुम्हें कितना शुकून मिलता था ।
तुमने कृष्ण की
बांसुरी छुपाने की
कई बार कोशिश की ,
कृष्ण के पैरों का महावर
तुम रोज ही धोया करतीं थीं ।
अब ,
वो सब कहाँ ?
तुम्हारी, धागे सी धारा
देखकर ही
कृष्ण अनुमान लगा लेंगे
कि तुम ,
पुनर्मिलन और दर्शन की
आकांक्षा से ही
जीवित हो ।
विद्या शर्मा ......
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