हे कृष्ण
तुम्हारी बांसुरी में
वही, अनहद
एक नाद है ?
या फ़िर
सारे नादों को
समां लिया है ?
एक अनहद
चेतन को
जड़ बना देता है ।
पति व्रताओं को
चंचल बना देता है ।
वाचाल को
मूक बना देता है ।
प्रकृति को
स्थिर बना देता है ।
तुम्हे क्या पता?
क्या क्या न कहा ?
क्या क्या न सुनाया ?
तुम्हारी उस
बांसुरी के सुर ने ।
विद्या शर्मा ...
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