काँटा
बबूल का हो
या गुलाब का
काँटा
शब्दों का हो
या निगाहों का
काँटा , चुभता है।
पाओ में चुभता है ,
आँख में चुभता है ,
और दिल में चुभता है ।
काँटों से पूर्ण जहाँ में ,
जीवन को पूर्ण करने ,
जो,
मंजिल बनी थी मेरी
वह काँटों भरी गली थी ।
चाहे अनचाहे
चलते रहे उसी पर ,
चौराहे से
जो पथ गया था ।
हर मोड़ पर गली के
कांटे बिछे हुए थे ,
चाह अगर
कभी भी
त्याग उस गली का
कोशिश भी उलझी
कंटकों में ।
औ
कंटकों ने
मुझे भी
काँटा बना दिया ।
विद्या शर्मा ...
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