तन्हाई में रहने की
बड़ी मुश्किल से आदत डाली है ।
अब , दस्तक न दो ।
खिड़की और दरवाजों को
बंद रखकर ।
रोशन दान में,
परदा लगाकर
दीपक बुझाकर ,
शून्य में निहारना
अब तो अच्छा लगने लगा है ।
अब ,
दस्तक न दो ।
क्युकी ,
उबलती भावनाओ
छलकते अरमानो को
मसोस कर ,
बड़ी देर में
सहज हो पाई हूँ ,
अब,
दस्तक न दो
इस अंधेरे की
घुटन में,
सीलन भरी उबासी में
धुंधलके प्रकाश में ,
बड़ी मुश्किल से
देख पाई हूँ ।
अब,
दस्तक न दो ।
विद्या शर्मा ...
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