बात तो वक्त की है ।
वक्त और बेवक्त की है ।
जीवन में,
जान में,
जहाँ में ,
दरकार है तो बस
वक्त की ।
बात इतनी सी है जब
पड़ी नज़र वक्त की
हम् पर
तब ई थी बहार
सब पर
कलियों,
भंवरों
और फूलों पर ।
बात तो यह भी है
की जब ,
उठ गई नज़र
वक्त की ,
दिल दिमाग
झकझोर दिया था ,
उमंगों,
हसरतों,
अरमानों
को तोडा ।
आते जाते इस वक्त को,
बाँधा है किसने
बंधन में
रुकता नही है
ख्वाब सा
वक्त आएगा
फ़िर
इंसान का ।
विद्या शर्मा ...
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