सावरा ,
कान्हा ,
चितचोर,
माखनचोर ,
हे मोहन !!
नीलकमल के सदृश्य इन
चरणों पर ,
मस्तक रखकर
राधा का ,
प्रणाम स्वीकारो ।
अब आगे क्या लिखूं,
हे गोविन्द !!
इस ,
बावरी राधा के
मन की व्यथा
तड़प और पुकार ,
क्या
तुम से छिपी है ?
मेरी
विवशता भी
हे माधव !!
क्या
तुमसे छिपी है ?
हे मधुसूदन !!
हे मधुसूदन !!
मेरे
दिल को तो ,
तुमने
चुम्बक की नाइ
दिल से चिपका लिया है ।
हे गोपाल !!
तुम्हें पत्र लिखती हूँ ,
राधा बनकर ,
और पढ़ती हूँ
कृष्ण बनकर ।
हे मुरलीधर !!
पत्र का जबाव देती हूँ ,
राधा बनकर ।
हे प्राण !!
मेरे पास इन पत्रों का
कोई हिसाब नहीं ।
हे परमानन्द !!
अगर कोई ,
ख़त तुम्हारे पास हो ।
तो उत्तर जरूर देना ।
हे स्याम !!
इंतजार में ,
तुम्हारी सखी ।
विद्या शर्मा ......
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