तुम जानते हो ?
मैं संतरी हूँ ।
तभी तो ,
तुम्हारी रक्षा कर पता हूँ ।
और
करता ही रहूँगा ।
क्युकी ,
मेरी ऊचाई और
विशालता ने ही
मुझे मजबूर किया है ।
तुम चाहो तो ,
मेरी इस ऊचाई से
सबक ले लो ।
ऊचे और ऊचे
उठ कर ,
आसमान को छूकर ,
देखो तो ,
मैं खुशी से
नाच उठूँगा ।
मेरी तरह
ऊंचे उठकर
अडिग बन जाना,
फ़िर
विरला ही
तुम्हे छू सकेगा ।
विद्या शर्मा ...
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