Sunday, March 8, 2009

बिन मांझी की नाव


एक नाव ,

नदी के बीच ,

उफनती , झ्गियाती

नदी में ,

भंवर से कुछ ही दूर ,

शायद ,पलभर में

अपने भीतर

स्याह काली गहरे में ,

खींच ले जाती ।

जिसमें वह बैठी है ।

लहरों के वेग को

सहन करती ,

थपेडों को झेलती ,

शून्य में निहारती हुई ,

अब , उसे

परमात्मा ही

दिखाई देता होगा ।

भंवर की विराटता

उसे ,

जिन्दगी का रहस्य

समझा चुकी होगी ।

विद्या शर्मा .....

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