एक नाव ,
नदी के बीच ,
उफनती , झ्गियाती
नदी में ,
भंवर से कुछ ही दूर ,
शायद ,पलभर में
अपने भीतर
स्याह काली गहरे में ,
खींच ले जाती ।
जिसमें वह बैठी है ।
लहरों के वेग को
सहन करती ,
थपेडों को झेलती ,
शून्य में निहारती हुई ,
अब , उसे
परमात्मा ही
दिखाई देता होगा ।
भंवर की विराटता
उसे ,
जिन्दगी का रहस्य
समझा चुकी होगी ।
विद्या शर्मा .....
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