सामने
पेड़ों के झुरमुट में
बनी झोपडी
और
बैलों से घूम घूम कर
पानी निकालने वाला रहंट ,
एक पतले पेड़ की दाल से
बंधी बकरी
और उसके तीन बच्चे ,
एक घने वृक्ष के नीचे
खरहरी खाट पर
घुटनों तक ,
मटमैली धोती पहने
लेटा है कोई ।
उसकी खिचडी हुई दाड़ी
और
चेहरे की
सलवटें ही
बताती हैं
उसकी उम्र ,
माथे की लकीरें
उसकी ,
अनुभवता और प्रौड़ता को
उजागर करने में
ज़रा भी
नही हिचकिचाती ।
वहीँ ,
कुछ दूरी पर ,
जाने वाली पगडण्डी ,
थोडी दूर तक तो
दिखाती हैं
फ़िर ,
खेतों मेडों
इधर उधर उगे
झाडों
और
बढती हुई फसल
उस
पगडण्डी को ,
आंखों से
ओझल
करके ही सुख मिला होगा ।
उनको क्या पता ,
उस पर चलने वाला
कहाँ और क्यूँ
जा रहा है ।
हर
डगर का
कहीं न कहीं
विलय है ।
पर
अंत नही ।
विद्या शर्मा ...
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