फिसलना भी कला है ।
तजुर्बे की दरकार है ।
फिसलते ही पैर के
प्लास्टर से ही खैर है ।
फिसल जाए दिल तो
बनादे उसे दीवाना ।
फिसल जाएँ आँखें ,
तो बना दे उसे
परवाना ।
अगर जीभ फिसली तो ,
मीठी - तो बालूशाही जैसी ,
कड़वी- तो तलवार या कटारी जैसी ।
जीभ की फिसलन ही
बना लेती है
कभी अपना
जीभ की फिसलन ही
बना देती है
पराया ।
फिसलना सबका
दर्दीला है ।
प्यारा भी है ,
नकारा भी है ।
फिसलन भी एक कला है ,
एक चमत्कारी बाला है ।
विद्या शर्मा ...
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