चली बयार कुछ ऐसी
जिया मेरा डोल गया रे ,
साथी सब झूंठे
झूंठे उनके वादे ,
जब वरपाया कहर
जिया मेरा डोल गया रे ,
रिश्ते बन गये गाली
करें दिखावा थोथा ,
आशा बनी निराशा
जिया मेरा डोल गया रे ,
सहेली बनी पहेली
फांस गले में अटकी ,
जीवन कर दिया भ्रष्ट
जिया मेरा डोल गया रे ,
दुश्मन बन गया भाई
पिता बना जंजाल ,
जीना हुआ दुस्वार
जिया मेरा डोल गया रे ।
कन्या लक्ष्मी नही रही
बन गई कलंक ,
नोचा खसोटा फ़िर बेचा ,
जिया मेरा डोल गया रे ।
कृष्ण कब उतरेंगे धरा पर
रखने को लाज ,
दर्शन की मारी मैं,
जिया मेरा डोल गया रे ।
विद्या शर्मा ....