Sunday, March 1, 2015

पलायन

आज से करीब १२५ बरस पूर्व की बात है , बारिश नहीं हुई तो सब जगह सूखा हो गया , गांव भर के लोग शहरों की तरफ भागने लगे , हमारा गांव चावली भी अछूता नहीं रहा , पिताजी दो भाई थे लेकिन चाचा ताऊ मिलकर पांच भाई थे , २० बीघा जमीन उनका पेट नहीं भर सकी , सारा अनाज ख़त्म हो गया , पिताजी की माँ ने ताऊ के घर आटा या गेहूं लेने भेजा लेकिन ताई के मना करने पर , दादी ने आटे से निकली भूसी को छानकर आटा बनाया और बच्चों को खिला दिया , इस स्तिथि से १० बरस के पिता घबरा गए और उसी समय गांव छोड़ दिया जो ट्रेन मिली उसी में चढ़ गए , कानपुर पहुंचकर काम करना शुरू किया , मजदूरी करके ही घर का खर्च निकालना शुरू किया और सभी भाई बहनों को अपने पास ले आये।

अकाल के हालातों में भी गांव से बहुत से लोग कहीं नहीं गए , जिनके पास अनाज था।  शहर आकर पिताजी ने पहला काम किया जो पढ़ना चाहता था उसे पढ़ने भेजा , किसी की नौकरी की जुगाड़ लगाई , तब बड़ी दादी ने भी अपने बेटे को पिताजी के पास भेज दिया , पिताजी की शादी के बाद १० बच्चे हुए , मैं सबसे बड़ी थी , जब मुझे अकल आई तब पिताजी बड़ी मिठाई की दुकान सँभालते थे , घर का खर्च बहुत ही अच्छा चलता था , दस दुकान के वे मालिक थे।

कभी -कभी बुरा समय हमारे लिए नए रस्ते खोलता है , सब कुछ बुरा है ऐसा सोचकर अपने हालात बिगाड़ने नहीं चाहिए , अच्छा समय भी आता है , उसके लिए परिश्रम और इंतजार करना चाहिए।

विद्या शर्मा 

No comments: