Tuesday, March 10, 2015

दुहरा कर्ज

वैदेही के खानदान में तीन पीढ़ियों से कोई कन्या संतान नहीं थी , दादी ने चार बेटों को जन्म दिया , गजोधर , रामदेव , राम दयाल  और नौबत राम। सभी खुश थे , गृहस्थी का खर्च तो चल जाता था लेकिन युवा होते बेटों को आधुनिक सुविधाओं ने अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया था तो वे गांव से पलायन करने लगे और एक दिन शहर  में  अपना आशियाना बना लिया।

बड़े बेटे के घर  दो बेटियों ने जन्म लिया , दूसरे को एक बेटा , तीसरे को कोई संतान नहीं हुई चौथे बेटे के घर पांच बेटी और पांच बेटों ने जन्म लिया , दादी का आशीर्वाद वैदेही की माँ को ही लगा , दादी हमेशा कहती थी पांच कन्या हों , सभी बहुत खुश थे , पहली कन्या तो नाजों से पल रही थी , ताऊ ने चौदह बरस की उम्र में भानु प्रिया का विवाह कर दिया , पति हाथरस के जमीदार परिवार से थे , गांव में रईस बनकर रहना अलग बात होती है , उनकी दामाद वाली ठसक थी , घर के मुखिया थे तो अलग रुतवा था , अन्य बेटियां अभी पढ़ रहीं थीं।

वैदेही का परिवार मिलकर रहता था , कोई समझ ही नहीं पाता था कि कौन चाचा का बच्चा है कौन ताऊ का , भानुप्रिया जब छोटी थी तब ताऊ से बोल दिया करती थी देखना बाबा आपके ऊपर मेरा दुहरा कर्ज है वे समझ नहीं पाते थे , कहते हाँ बेटी , ठीक है तुझे जो चाहिए बता सब मिल जायेगा , सब हंसी में बातें होती रहती थीं , भानु ससुराल से जल्दी ही घर आने की जिद करती थी , घर आती तो ससुराल जाने की जिद करती उनका मिजाज कुछ बदल रहा था , पति अपनी शिकायत सासु जी से करते तो भी सभी लोग मज़ाक में ले जाते , धीरे -धीरे दौनों के रिश्ते में खींचा तानी शुरू हो गई और एक दिन भानुप्रिया पीहर आने की जिद करने लगीं तब पति तेज बहादुर ने कह दिया अब , वापस न आना और भानुप्रिया ने रेलगाड़ी में ही नींद की गोलियां खा लीं और हमेशा के लिए पीहर और ससुराल का सिलसिला ख़त्म कर दिया।

ताऊ के साथ ही सारा घर बिटिया के जाने से दुखी था , ताई भी दुनिया छोड़ गई , एक बरस तक सब सामान्य हो गया , तब एक रात चाची को सपना आया कि आप लोग दुखी न हों , मैं वापस आ रही हूँ , वैदेही की माँ चौथी संतान को जन्म देने वाली थी , धीरे -धीरे घर के सभी सदस्यों को स्वपन आया और यही बात निश्चित हो गई कि भानुप्रिया आ रही है , सभी बेसब्री से इंतजार करने लगे , ताऊ की ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं था , वो समय भी आया जब , भानु वापस चाची की संतान के रूप में घर आ चुकी थी , भानु के शारीरिक चिन्ह तक सोना के शरीर पर मौजूद थे , जब , कभी तेज बहादुर ससुराल आते तो सोना छुप जाती थी क्योंकि उस समय लड़कियां पति से भी पर्दा करतीं थीं , माँ को चार साल की सोना बता देती थी कि उन्हें क्या पसंद है क्या नहीं , तेज के सामने नहीं जाती थीं , सोना की बहुत सारी बातें ताऊ को पक्का करतीं थीं कि अवश्य ही भानु अपना दूसरा कर्ज लेने के लिए आई है।

ताऊ की लाड़ली सोना अभी ग्रेजुएशन ही कर रही थी कि हाथरस से ही इंजिनियर का  रिश्ता आया और सोना का विवाह भी तय हो गया , सोना जब ससुराल गई तब पता चला कि पहली वाली ससुराल से भी आना -जाना है , सोना एक बरस ही अपने पति के साथ रह पाई इस बार पति मुकेश ने आत्महत्या करली , कारण पत्नी पीहर नहीं जाएगी चाहे पहली रक्षा बंधन ही क्यों न हो , हिसाब बराबर हो गया , पहले भानुप्रिया ने साथ छोड़ा इस बार मुकेश ने साथ छोड़ा , सोना अकेली रह गई।

ताऊ सोचते थे कि जाने कैसा कर्ज था , कुछ समझ नहीं आता , बड़ी ख़ुशी के साथ ताऊ ने कर्ज अदा किया , इस वाकये से एक बात तो समझ आती है कि हम सभी को अपने कर्मों  का हिसाब रखना चाहिए , इस नहीं तो उस जन्म में अवश्य चुकाना होगा , ताऊ जब बीमार पड़े तब , उनकी छोटी बेटी माया बिलकुल ध्यान नहीं देतीं थीं , उन्हें शक था बाबा अवश्य ही सोना को वसीयत का हिस्सा देंगे , हुआ भी यही बाबा जब घर ठीक होकर आये तब , सोना को भी अपनी संपत्ति का हक़दार बना दिया। धन के लिए कटुता आना स्वभाविक था लेकिन समय ढलते हुए सब ठीक हो गया , ताऊ भी एक दिन नहीं रहे , कर्ज का मतलब वैदेही समझ चुकी थी।

विद्या शर्मा 

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