Friday, March 13, 2015

मामी की सहेली

राजस्थान में छोटा सा गांव डावली , वहां मामा दो और एक मामी रहते थे , कच्चा घर था , दो बड़े -बड़े बरांडे , एक आँगन बड़ा सा , दो कमरे।  बरांडे में अरहर की लकड़ी लगाकर जानवरों के लिए बाड़ा बनाया गया था , जहाँ मामी की सहेली भैंस लीला रहती थी , बड़े मामा का विवाह नहीं हुआ था , छोटे मामा का हुआ भी तो मुश्किल से एक बेटी पैदा हुई जो शादी के बाद अपने घर चली गई , मामी अकेली रह गई क्या करती , जब देखो ,तब भैंस का ही काम करना पड़ता था , मामी को लीला के अलावा कोई नहीं भाया उसी को सहेली बना लिया , पूरे गांव को पता था कि मामी अपनी सहेली से सारा सुख -दुःख कहती है , कभी जब मामा से नाराज हो जातीं तो सीधे लीला के पास जाकर दुखड़ा रोया  जाता।

मामा के पास एक बड़ा बाग़ था जिसमें सभी फलों के पेड थे , उसी में फसल भी हो जाती थी जब भी मामा घर आते कुछ अवश्य लाते थे लेकिन इतने कंजूस थे कि कभी भी आम , अमरुद नहीं लाते थे , जब बाग़ खाली होने लगता तब लेकर आते वो भी १५ से २० अमरुद , मामी बड़ी खुश मिज़ाज थी , जब भी माँ के घर से हम जाते तब , मामी घी से पूरी बनाती , घी का हलवा बनाती , खीर बनाती और बड़े प्यार से खिलाती , माँ डावली कम ही जा पाती थी , सायकिल से हम जाते और शाम को वापस आ जाते , मामी जाते समय दस रूपये हमारे हाथ में पकड़ा देती।

मामी अपनी सहेली लीला को जब कभी मामा की बेरुखी बताती तो लीला भी कभी मुंह हिलाकर , कभी आँखें मटकाकर जवाब देती थी , घंटों तक मामी लीला से बातें किया करती और लीला एक टक मामी को निहारती रहती , कभी जब मामी बीमार होती तब , मामी को चाटकर लीला प्यार बरसाती। मामा तो बाग़ का काम देखने के बाद घर के बड़े बरांडे में रामायण , कभी महाभारत का पाठ शुरू कर देते , गांव के लोग भी सुनते और रात में वहीँ सो भी जाते , सुबह उठ कर जाते , एक बार मामा के घर गए तो बारिश हो गई और रात वहीँ रहने का निश्चय किया , सुबह देखा सायकिल के पास स्वाफी रखीं थी , मामा रात को तो नहीं थीं तभी भुस के ढेर से चार पांच लोग निकले और स्वाफी से मुंह साफ़ करते हुए चले गए , तब मामा ने बताया कि गांव के लोग हर वस्तु का उपयोग करना जानते हैं , उन्हें पता है कि भुस गरम रहता है।

मामा ने साथ में टोसा बाँधा और हम घर आ गए ,मामी अपनी सहेली के साथ फिर व्यस्त हो गई। गांव की जिंदगी बहुत ही सहज होती है।

विद्या शर्मा 

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