Friday, March 13, 2015

बाबू जी

शारदा का विवाह ६० के दशक में एक जमीदार परिवार में हुआ था , शहर में रहने वाली लड़की को गांव में आकर थोड़ा सामंजस्य बिठाना पड़ा , सास ससुर , ननदें , देवर  सभी के साथ रहना जरा सा कठिन रहा , लेकिन जब , घर में लड़की आ जाती है तब , सब आसान हो जाता है , घर के चौबारे में , बड़े नीम के पेड़ पर सावन में झूला पड़ जाता था , रात में घर की औरतें एक जगह आ जातीं और सावन के मल्ल्हार गाने लगतीं , दिन भर की थकान पल भर में छूमंतर हो जाती थी , पता ही नहीं चलता था कितनी रात हो गई है

शारदा के ससुरजी इलाहबाद से वकालत करके आये थे , अंग्रजों की खिलाफत करते थे लेकिन  अंग्रेजी ही पढ़ाते थे , कई वकील उनसे वकालत की शिक्षा लेने आते थे , बाबूजी ने होम्योपैथी का प्रशिक्षण लिया था , वे डॉ, थे , गांव के किसी भी बीमार आदमी को दवा देते थे , सभी को उनकी दवा से फायदा भी होता था , बीमार एक कटोरी में साफ़ पानी लाता था और वे उसमें दवा की कुछ बूँदें डाल देते थे , दूर -दूर से लोग उनके पास इलाज के लिए आते थे।

एक आदमी उनके पास आया जिसकी नाक लम्बी हो गई थी , बाबूजी ने देखा और एक खुराक खिला दी और दूसरी बाद में खाने को कहा और बीमार ठीक हो गया , बाबूजी की शौहरत सब जगह फ़ैल गई , वकालत से ज्यादा डाक्टरी चल रही थी पर वे किसी से एक पैसा नहीं लेते थे , एक मरीज़ इतना मोटा हो गया था उसे ठेल पर लिटा कर लाया गया , उसे दवा खिला दी , दूसरी एक हफ्ते बाद और कहा इसे ऐसी जगह रखना जहाँ से यूरिन पास कर सके , जल्दी -जल्दी। मरीज़ जल्दी ठीक हो गया।

बाबूजी सुबह से घर से निकल जाते थे कभी कोर्ट जाते कभी कचहरी क्योंकि जमीनों के मुकदद्मे लगे हुए थे , उनकी खाली पड़ी जगहों पर लोगों ने अपने घर बना लिए थे , कोई खेती करने लगा , हर समय इन्ही कामों में व्यस्त रहते थे ,हमेशा पैदल ही जाते थे ,कभी एक रास्ते से नहीं आते जाते थे क्योंकि लोग उनकी जान के पीछे पड़ गए थे , घर -परिवार वालों  जल्दी घर आने को बोलते थे , शारदा के पति अक्सर देर से आते तो बाबूजी खूब फटकार लगाते लेकिन किसी पर कोई असर नहीं होता था।

बाबूजी सुबह दूध दलिया खाते और कोर्ट चले जाते , दिन में चने मुरमुरे और मूंगफली खाते फिर शाम को ही खाना खाते , गांव भर के मसले बाबूजी ही सुलझा देते थे , कभी गांव में पुलिस नहीं आई और न कभी कोई झगड़ा ही होता था , गरीब लोगों को हर महीने गेंहू , चना , बाजरा जो भी संभव सभी को देते थे , शादी ब्याह की मुश्किलें भी बाबूजी ही देख लेते थे , किसी को होली पर रंगना हो तो अंदर आकर बता देते थे और रंगने के बाद बोल देते अरे !! मैंने तो मना किया था ,शादी की हर रस्म का आनंद लेते थे , बेटे की शादी में घरातियों से कहकर ज्योनार गाने को कहा , जिसमें बरातियों को गालियां दी जातीं हैं।

बाबूजी दुनियां में निराले ही थे , सीधे , सच्चे , हंस मुख , ईमानदार , सरल और महान इंसान थे , उनके जैसा अब , कोई भी होना मुश्किल है।

विद्या शर्मा  

No comments: