Sunday, March 1, 2015

परीक्षा

सन १९४५ में भी लड़कियों के लिए शिक्षा का कोई प्रबंध नहीं था , घर से सात से दस किलोमीटर दूर तक स्कूल होते थे , वहां लड़कियां नहीं जा पातीं थीं , ५ वीं कक्षा तक की पढाई तो घर के पास हो जाती थी लेकिन आगे पढ़ना हो तो मुश्किल होता था , पिताजी के दोस्त के कहने पर विद्या को भी जुहारी देवी गर्ल्स इंटर कॉलेज में बड़ी मुश्किल से दाखिला मिल गया , घर से सात किलोमीटर आना जाना कष्ट दाई होता था , विद्या की सहेली सावित्री भी वहीँ पढ़ने जाती थी तो पिताजी का कहना था , जब वो जा सकती है तो तुम क्यों नहीं जा सकतीं। विद्या तो कठपुतली जैसी सावित्री के पीछे चलती जाती थी उसे रस्ते का कोई ज्ञान नहीं था।

अंग्रेजी की पढाई बच्चों के लिए मुश्किल होती थी यदि घर में कोई पढने वाला न हो तो , विद्या भी उन्ही बच्चों में सुमार थी जो ग्रेस लेकर पास हो जाते थे , किसी तरह गाड़ी चल रही थी , उस समय लड़कियों के लिए गृह विज्ञान विषय को अधिक रूचि लेकर पढ़ाया जाता था , स्कूल में कुकिंग का पूरा सामान ले जातीं थीं , सिलाई -कढ़ाई , बुनाई सब सिखाया जाता था , प्रेक्टिकल होने से पहले ही बता दिया जाता था कि क्या बनाना है , वही सामान स्कूल लेकर आती थीं लड़कियां और टीचर को खिलाया जाता था।

जब विद्या को प्रयोगात्मक परीक्षा देनी थी ,तब उसकी बड़ी बहन मणि की शादी हो रही थी किसी को चिंता नहीं थी कि बच्चे क्या पढ़ रहे हैं या किसकी परीक्षा है , गाजर का हलवा बनाने को मिला था तो किसी पडोसी से गाजर मंगवाई तो वह काली गाजर ले आया , अब क्या करे ? किसी तरह माँ से पूछकर हलवा बनाया गया , ऊपर से थोड़ी मेवा डालकर विद्या स्कूल ले गई , सारे बच्चे टीचर के पास जाते तो उन्हें मुबारकवाद मिलती कि खाना अच्छा बना है लेकिन विद्या की तो दम निकला जा रहा था क्योंकि हलवा काला जो था , क्या करती आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे , सहेलियां पूछ रही थीं क्यों रो रही हो ? तो क्या जबाव दे ,तब सावित्री आई और बोली - पगली जो है उसे ही दिखा कर आ , सब ठीक होगा , बोलना मैंने ही बनाया है , बता देना कैसे बनाया है।

हिम्मत से टीचर के पास विद्या गई और कटोरी का हलवा रख दिया , देखते ही टीचर बोली - अरे !! काली गाजर का हलवा वाह ! और सभी साथी टीचर को खाने के लिए दिया , सभी ने बहुत तारीफ की , विद्या ख़ुशी मैं भी रो रही थी , जान में जान आई , टीचर ने पूछ लिया कैसे बनाया था , सब बता दिया उस दिन सबसे ज्यादा नंबर विद्या को ही मिले। इसी तरह जब वार्षिक परीक्षा देनी थी तब , लौकी की सब्जी , रायता और खीर बनाई थी क्योंकि विद्या के पास सिर्फ लौकी ही उपलब्ध थी जब एक सब्जी से खीर , रायता और सब्जी बनाकर टीचर को दिखाया तो दंग रह गईं , तब भी विद्या सबसे अधिक नंबर ले गई , टीचर ने सभी लड़कियों को बताया कि रसोई का कौशल तो तभी है जब हम एक ही वस्तु से अधिक व्यंजन बना सकें , विद्या मन ही मन सोच रही थी ये सब मैं माँ की वजह से कर पाई क्योंकि माँ ही हमें खाना बनाने के लिए नए तरीके सिखाती रहतीं हैं।

विद्या शर्मा 

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