Tuesday, February 16, 2010

हे प्रभु जी !! आओ , एक बार

हे !! प्रभु जी !!
आप पृथ्वी पर आयें 
और देख लें ,
कि..
जीवन क्या होता है ?
सुख और दुःख का 
आभास करें .
भूख और प्यास की 
तड़फ का अनुभव करें ,
तपती दुपहरी में 
जब पांव जलें 
जमी पर .
सर्दी से जब ,
वदन ठिठुरता 
भीगे तन - मन बारिस में .
दर-दर की ठोकर खाते 
फिर भी न मिलाता चैन .
चना -चबैना कोई देता 
एक लोटा पानी .
तृषा शांत तब हो जाती ,
जब , छाँव मिल जाती प्यारी .
चार -दीवारें और एक छत 
कैसे मिलाती ?
ये तुम कैसे जानोगे ?
जब गज भर धरती 
नसीब होती , मुश्किल से .
आओ , एक बार 
प्रभु जी !! 
देखो दुनियां दारी.
विद्या शर्मा ...