Tuesday, March 3, 2015

माँ

१९३० के करीब माँ आठ साल की थीं , उस समय लड़कियों की पढाई अधिक नहीं थी , चार क्लास भी आज की दसवीं के बराबर थी , माँ , बड़ी चतुर थीं , कुछ भी देखकर वैसा ही बना लेती थीं , सिलाई , कढ़ाई , बुनाई कोई भी काम ऐसा नहीं था जो माँ न कर सके , बाबा , माँ के गुणगान उनके सामने कभी नहीं करते थे , बाबा ने अपनी बेटियों को भी अच्छा पढ़ाया , लिखाया , जो भी सीखना चाहा सब सीखने दिया , लेकिन माँ का तो जबाव ही नहीं था।

माँ , सारे घर का काम करती , उन दिनों घरेलू काम के लिए सेवक मिलना कोई मुश्किल नहीं था लेकिन माँ चाहती थीं कि बेटियां भी काम करना सीखें , जब रसोई का काम निबट जाता तब , माँ सिलाई , कढ़ाई का काम करती थीं , कभी आराम नहीं किया , कुछ न कुछ सीखना ही उनकी आदत थी , माँ ने बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठा रखी थी बाबा को कह  दिया था किसी भी बेटी की शादी सत्रह साल से कम में नहीं होगी , बाबा भी सहमत हो गए थे।

माँ जाने कैसे दस बच्चों को पालतीं थीं , घर का काम करना , स्कूल भेजना , नास्ता बनाना , खाना बनाना , कपडे धोना , सफाई करना और न जाने कितने काम , कोई घर आ जाये तो खाना खिलाना , दुकान पर दस लागों का खाना भेजना , अगर मैं होती माँ की जगह तो मर गई होती , माँ पता नहीं किस मिटटी की बनीं थीं , बाबा की नाराजगी भी झेलती रहतीं थीं , लड़कियों को हमेशा अच्छी सीख देतीं थीं , किसी का अपमान मत करो , आँखें झुका कर चलो , जोर से मत हंसो , गुस्सा को पीना सीखो अमृत होता है , गीता जैसे सारे उपदेश बेटियों को घुट्टी की तरह पिलाया करतीं थीं

उस समय बेटियां तो पूरे घर , खानदान  और गांव शहर की बेटियां होती थीं , कभी कोई परेशानी नहीं होती थी , माँ फिर भी कहती थी कि लड़कियां कांच की गुड़िया होती हैं , बड़ी संभल कर रखी जाती हैं , माँ , आज ९० बरस से ज्यादा की हो गई , बाबा तो अब नहीं रहे लेकिन आज भी वे सब काम कर लेती हैं , माँ जैसा कोई नहीं।
अपनी बेटियों को क्या सीख दूँ , कुछ समझ नहीं आता क्योंकि बेटियां मुझे ही बता देतीं हैं माँ , ऐसा मत करो , क्या सही है , क्या गलत है , माँ , दैवीय शक्ति है।

विद्या शर्मा 

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