Wednesday, March 4, 2015

वसीयत

सुकन्या अपने माता -पिता के साथ बालूगंज में रहती थी , पिताजी का कारोबार वहीँ चल रहा था , मेडिकल की दुकान ५० साल पुरानी थी , हर कोई पिताजी को डाक्टर साब ही बोलता था क्योंकि छोटी - मोटी दवा तो वे ही दे देते थे , सब कुछ ठीक चल रहा था , पिताजी के पास गांव से खत आया माँ यानि दादी की तबियत ख़राब रहती है , तो पिताजी को उन्हें लेकर आना है , दो दिन भाई को दुकान सौंपकर पिताजी गांव चले गए , दादी अब हमारे पास आ गई।

भाई मेडिकल की पढाई कर रहा था और मैं बी ,ए कर रही थी , माँ घर का काम करती और दादी का ख्याल भी रखती , छोटा सा परिवार बहुत ही अच्छा चल रहा था , गांव से कभी  ताऊ आ जाते तब जरूर घर  की शांति भंग होती थी क्योंकि खेत का हिसाब इतना नहीं इतना था , वो जमीन तो उसने हड़प ली ,अब हमारे पास नहीं है यही किस्से चलते रहते , कुल मिलाकर चाचा लोग हमें गांव से दखल ही करना चाहते थे , वे लोग चाहते थे कि हम यहाँ बहुत कमाई कर रहे हैं तो गांव का सब छोड़ दें , पिताजी मान भी गए , वे चाहते थे सब लोगों में एकता रहे।

अचानक एक दिन दादी की तबियत ख़राब हो गई , अस्पताल ले गए , वहां दस दिन रहीं और हमेशा के लिए चली गईं , गांव भर के लोग आये , १५ दिन तक यहीं डेरा जमाकर रखा , वो तो हमारे पडोसी बहुत अच्छे थे जो पिताजी को अकेले पन का अहसास नहीं होने दिया और दादी की अंत्येष्टि ठीक से संपन्न हो गई , इस बात पर भी गांव वाले नाराज ही होकर गए कि सब कुछ ठीक कैसे हुआ।

सबके जाने के बाद माँ की तबियत ख़राब हो गई क्योंकि बहुत काम किया था , भाई पढ़ने चला गया मैं , माँ के साथ घर का काम देखने लगी तो सोचा अब प्राइवेट फार्म भर दुंगी पढाई होती रहेगी , माँ किसी तरह मान गई , पिताजी अब पहले सी कमाई नहीं कर पा रहे थे क्योंकि अब कई दुकानें खुल गई थीं और फिर माँ की तबियत के कारन चिंतित भी रहते थे , पडोसी श्याम बिहारी जी पिताजी को बड़ा भाई मानते थे , अपने सारे काम पिताजी से पूंछकर ही करते थे , अब माँ के कारन मेरे लिए रिश्ते देखने लगे क्योंकि माँ चाहती थीं उनके सामने मेरी शादी हो , पर विधि को कुछ और ही मंजूर था , माँ बीमार हो गईं और अस्पताल गईं तो वापस ही नहीं आईं , दादी की तरह वे भी चली गईं।

गांव के लोग आये और चार दिन बाद चले गए क्योंकि घर का काम उन्हें ही करना पड़ रहा था , मेरी पढाई भी छूट गई थी पिताजी भी अब शांत रहने लगे थे , मेरे साथ काम करते थे बोलते बेटी तो एक दिन चली जाएगी कितना काम करती है , श्याम बिहारी चाचा आते तो , मेरे लिए रिश्ते की ही बात होती और एक साल बाद विपिन से मेरा विवाह भी हो गया मैं , अब पास ही राजामंडी में रहने लगी , जब पिताजी को जरूरत होती आ जाती , भाई ,अब ट्रेनिंग कर रहा था , पिताजी का ध्यान श्याम चाचा चाची रखते , पिताजी को हार्ट की बीमारी हो गई थी , इलाज चल रहा था , दुकान  को अब एक लड़का बिट्टू देख रहा था , कभी श्याम चाचा भी चले जाते थे क्योंकि वे रिटायर हो गए थे।

भाई का जॉब लगा तो दिल्ली के अस्पताल में ज्वाइन किया , कह रहा था जल्दी ही पिताजी को ले जाऊंगा लेकिन एक रात पिताजी को अटैक आया तो अस्पताल भी न ले जा पाये , गांव वाले फिर हाजिर हो गए , इस बार कोई जाने का नाम नहीं ले रहा था , श्याम चाचा ने सब संभाल रखा था , भाई भी अब बड़ा हो गया था तो सारी रणनीति समझता था , श्याम चाचा ने बताया कि भाई साब वसीयत कर गए हैं तो सब लोग रुक गए , जब तरहवीं हो गई तब , वकील को बुलाया गया और उन्होंने बताया कि घर बेटी को दिया है , दुकान और गांव का खेत बेटे को दिया है तो सके पैरों से जमीन खिसक गई क्योंकि वे लोग समझ रहे थे कि उल्टा हमें कुछ मिल जायेगा , सब लोग सामान बटोर कर रवाना हो गये , भाई और हम लोग पिताजी के लिए हफ्ते भर तक शोक मनाते  रहे और वापस अपने काम पर चले गए।

विद्या शर्मा 

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