Monday, March 16, 2015

बिरजू का भूत

माँ , अपने पीहर बहुत कम जाया करती थीं , नाना नानी बहुत पहले ही गुजर गए थे , मामा था जो अपने दोस्तों के साथ घूमता रहता था , कभी खेत पर जाता ,कभी शहर में घूमता ,बस यूँ ही अपना समय बर्वाद करता था जब ,माँ ,बाबा की डांट -फटकार से दुखी हो जातीँ तो मामा के पास जाने का विचार पक्का कर लेती , हम छोटे बच्चे साथ हो लेते थे , माँ , एक बूढी नानी ननकी के घर जाती थी गेंहू पीसने के लिए , निठल्ला मामा घर की हालत ख़राब करके रखता था , माँ , एक हफ्ते तक घर ही संभारती रहती , कुछ दिनों तक मामा की आवारगी पर रोक लग जाती थी।

वहीँ गांव के कुंए के पास हरिया और बिरजू का घर भी था , दौनों साथ -साथ खेत पर जाते , जानवरों का काम करते , आराम करते फिर अलाव जलाकर ,दोस्तों के साथ किस्से -कहानियां सुनाते रहते ,मामा उन लोगों के पास जाकर ताश खेलता था , माँ , डांट लगाती थी ,पर उसपर कोई असर नहीं होता था , हरिया अपने घर के बरांडे में सोता था , बिरजू सुबह चार बजे आवाज लगाता और हरिया उठकर मुंह -हाथ धोता और बिरजू के साथ चल देता , यही रोज का नियम था , दिन में पेड़ की छाँव में आराम करते थे , जब ये लोग खेत पर होते तो हरिया की माँ , खेत पर ही रोटी और अचार ले आती थी दोनो दोस्त खाना खाते और खेत का काम पूरा करके ही वापस आते।

माँ , पंद्रह दिन से अधिक कभी नानी के घर नहीं रूकती थी , मामा यह जानता था , एक रात को सब लोग अलाव पर कहानिया सुना रहे थे , तभी बिरजू को दस बरस पुरानी बात याद आ गई , बहन जी सच्चा किस्सा सुनाता हूँ , मैं रोज हरिया को लेने जाता था , एक दिन मुझे बुखार आ गया तो में न जा सका लेकिन हरिया के पास सुबह तड़के बिरजू के रूप में भूत पहुँच गया , हरिया भी उठा और साथ चल दिया , रास्ते में लगा आज तो रात अधिक है , बिरजू !! आज जल्दी क्यों आया ? नहीं ऐसा नहीं है , तू चल , लेकिन हरिया थोड़ा डर गया तो वहीँ बैठ गया और चिलम जलाने लगा , बिरजू का भूत बोला ! भाई चल आग मत जला , हरिया समझ गया कुछ तो गड़बड़ है सब जगह सन्नाटा था , खेत तक गया तभी हरिया ने सोच लिया चिलम नहीं छोड़ेगा लेकिन बिरजू भूत ने खेत का काम करवाने के लिए बैल लगवा लिए और हरिया का पैर बैल की डोरी में फंस गया , बैल बिदक गए क्योंकि जानवर तो भूत की उपस्तिथि समझ रहे थे।

हम लोग माँ के आँचल में घुसते जा रहे थे , मामा भी डर रहा था , तब बिरजू ने बताया कि बैल हरिया को घसीटते हुए घर तक ले आये , रास्ते में ही हरिया के प्राण पखेरू उड़ गए , गांव भर में दहशत  फ़ैल गई वो तो अच्छा हुआ मैं बीमार था वरना लोग मेरा भी जनाजा निकाल देते , मुझे बहुत दुःख हुआ मेरा दोस्त इस तरह गया , कई बरस तक मैं खेत पर काम नहीं कर पाया , अब सब ठीक है , लेकिन मेरा रूप धरकर मेरे दोस्त को मार डाला। हम सभी आश्चर्य चकित थे।  मामा के गांव में फिर कभी जाना नहीं हुआ। आज भी पुराने किस्से याद आते हैं।

विद्या शर्मा  

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