Tuesday, March 17, 2015

कुम्भ का मेला

बरसों से सुनते आ रहे हैं कि कुम्भ के मेले में बड़ी भीड़ होती है , वहां दुनिया भर के साधु -संत आते हैं , हजारों -लाखों लोगों का हुज्जूम जमा होता है , नागा साधु अगर नाराज हो जाय तो , मार -काट मचा देते हैं , कहीं बीमारी फ़ैल जाती थी तो कहीं भगदड़ मच जाती थी , फिर भी हमारे खानदान से २० लोग कुम्भ लाभ के लिए गए , आज से ७० बरस पहले की बात है , घर के सभी पुरुष मेला देखने इलाहाबाद गए थे , मेला तो महीने भर से अधिक चलना था लेकिन कह कर गए थे आठ दिन में आ जायेंगे , माँ , चाची ताई ,सब घरों में थीं , माँ ने सोचा सब लोग कुम्भ गए हैं तो हम लोग गंगा नहाने चले जाते हैं , माँ , कुछ बच्चों को लेकर गंगा के लिए निकल पड़ीं।

उस समय कोई संचार साधन नहीं थे बस , अख़बार छपते थे वो भी दूसरे दिन खबर छप पाती थी , कोई आता -जाता होता तो खबर मिल जाती थी , कुम्भ में गए घरवालों की कोई खबर नहीं थी , माँ चिंतित तो थी पर उस समय सब भूल गईं , घर से खाना बनाकर ले गईं कि जब स्नान हो जायेगा तब , बच्चों के साथ वहीँ खाना खा लेंगे , रास्ते भर कोई भीड़ नहीं थी क्योंकि कुम्भ में जाने वाले अधिक थे , गंगा स्नान को कम लोग ही निकले थे , गंगा घाट पर लाउडस्पीकर में जोर -जोर से बोला जा रहा था , गंगा में गहराई में न जाएँ , बच्चों को साथ रखें , कूड़ा गंगा में न फैकें लेकिन साथ ही कुम्भ में मरने वाले परिवार वालों का भी बता रहे थे।

हम लोग जब स्नान कर चुके और खाना खाने के लिए साफ़ स्थान खोज रहे थे तभी माँ ने सुना कि राम चन्द्र , कानपुर वालों का पूरा परिवार ख़त्म हो गया है , माँ , घबरा गई , अब क्या करे , तभी घर वापस जाने के लिए तांगा देखने लगी , बच्चों से कहा , अब घर चलो वहीँ खाना खा लेना , बच्चे कुछ नहीं समझे , चुपचाप माँ के पीछे हो लिए , जब घर पहुंचे तो माँ ने रोना चालू कर दिया था , अभी तक कोई भी मेले से वापस नहीं आया था , सभी लोग परेशान हो गए , हालाँकि सब लोग अलग -अलग गए थे लेकिन हो सकता है वहां सब मिल गए हों , पड़ोसियों ने समझाया कि अभी दो दिन इंतजार करो जब कोई न आये तब पुलिस से पता लगाएंगे , माँ , शांत हुई और खाना भी खा लिया।

दो दिन बाद खानदान के चार लोग वापस आ गए लेकिन बाकी लोगों का कोई पता नहीं लगा , उन्होंने बताया कि बड़ी भीड़ है , हाथ को हाथ नहीं दीखता , हाथ छूटा तो बिछड़ गए , मिल नहीं सकते , हमने तो हाथ बांध रखे थे , हर दिन नई कहानियां सुना रहे थे , फिर चौथे दिन दो लोग वापस आ गए उन्होंने आकर कुछ नई बातें बताना शुरू कर दिया , बीमारी फ़ैल रही है , बहुत लोग मर रहे हैं , कोई गिनती नहीं है , अभी तक राम चन्द्र जी नहीं आये थे , माँ की घबराहट बढ़ती जा रही थी।

सारे रिश्तेदार आ गए , बाबा का कोई पता नहीं चल रहा था , चार दिन बाद तो घर में कुहराम मच गया , माँ का रो रोकर बुरा हाल था , सभी लोग एकत्र थे , अब तो कोई आस न रही पुलिस ने भी कह दिया राम चन्द्र नाम का व्यक्ति मरा है , क्या करें , पंडित जी ने बोला जब तक व्यक्ति का शरीर न हो तब तक अंतिम संस्कार कैसे कर सकते हैं , दो लोग कुम्भ भेजे गए , दुसरे दिन पता लगा कि राम चन्द्र नाम का व्यक्ति मरा है लेकिन गंगा में बहा दिया , सरकार क्या करेगी रखकर , अब तो , पक्का था कि बाबा इस दुनिया में नहीं रहे , पंडित ने शास्त्र देखना शुरू किया ,यदि कुम्भ में मृत्यु हो तो क्या , संस्कार करना चाहिए , कोई कुछ बोलता , कोई कुछ।

माँ , कुछ भी समझ नहीं पा रही थीं , तभी एकदम सन्नाटा हो गया , घर भर के लोग चुप हो गए , सुई गिरने की भी आवाज सुनी जा सकती थी , ताऊ बोले जा रे , महेश !! मिठाई लेकर आ , तभी पता चला बाबा अपने दोस्त के साथ वापस आ गए हैं , माँ , बहुत अचम्भित थी और खुश भी , सभी खुश थे , ताऊ ने बाबा से पूछा क्यों देर लगी , तब बाबा ने अपना हाल सुनाया कि एक हलवाई की दुकान पर बड़ी भीड़ थी ,वो लोगों को खिला नहीं पा रहा था तो , दौनों ने वहां काम कर लिया , जलेबी बनाने का काम किया , दो दिन तक जलेबी ही खाईं तो दस्त लग गए , वहीँ गंगा किनारे बालू में  तक पड़े रहे , जब पुलिस आई तो , स्वास्थ केंद्र भेजा गया , दो दिन वहां लग गए , जब चलने लायक हुए तो घर आये।  सभी प्रण किया अब कोई कुम्भ नहीं जायेगा।

विद्या शर्मा 

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