Sunday, March 14, 2010

तनहाइयाँ

 जीवन के 
झंझावातों के 
सैलाव में ,
डूबकर भी ,
तैरती रही |
अपनों से 
दूर -बहुत दूर 
होती रही ,
सभी मेरे साथ
तपते रहे ,
जीवन की 
भट्टी में ,
और तनहाइयों को 
मथती रही |
बच्चियां भी 
विदा ले चुकीं हैं ,
बंद रास्तों पर आकर 
ठहर सी गई हूँ ,
बहता सा जीवन भी 
एकाकी लगता है |

विद्धया शर्मा ..

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

वाह .....Renu जी गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!