Wednesday, March 24, 2010

उच्छ्वास

ठन्डे गर्म उच्छवासों में 
जाने क्या -क्या ,
रिसता है ?
मेरी किसी 
श्वांस ने अभी तक ,
नहीं बताया ,
उसकी तपन में 
क्या -क्या घुला है ?
मीठी सी चुभन या 
दर्द का सैलाव ,
आशाओं का ज्वार -भाटा या
उद्गारों का रेला ,
आकान्छाओं का बिखराव या 
खुशियों का जश्न ,
उच्छवासों का दरिया 
सब बहा ले जाता है ,
न , बादल गरजे ,न 
बिजली चमकी 
सावन से आंसूं 
बरस गए ,
न , अगन बुझ सकी , न ,
भस्म बन सकी ,
झुलस गए सपने ,
उच्छवासों के 
मेले में , मैं , 
समधिद्थ सी ,
तमाशा देखती रही |
विद्या शर्मा ...

No comments: