Monday, March 9, 2009

औरत


औरत कभी तवायफ नही होती

बेबसी मजबूर करती है ,

किसी को क्या पता ?

उसकी मुस्कान ,

एक पल में,

कितने आंसू पीती है ।

उसने , वही किया जो चाहा

किंतु , वह कभी नही हुआ

जो चाहा ।

उसके अरमान बादलों से

घुमड़ते हैं ,

तूफानों की उथल -पुथल

विनाश कर जाते हैं ।

जिन ख्वावों को

उम्र भर देखती रही वो ,

उसका होने से पहले ही

चुरा ले गया कोई ।

आग के पास

बुलाता था , बड़ी आरजुओं से

जब जलने लगा दामन

तो , बुझाया भी नही ।

विदाई न लो मुझसे

जुदाई का आलम पता है मुझे ,

इसीलिए चाहती हूँ मैं,

विदा कर दो मुझे ।

विद्या शर्मा ....




1 comment:

Pradeep Kumar said...

वाह ! क्या बात है !! विदाई लेने और देने में क्या फर्क है ये वही जान सकता है जो कभी इन दोनों हालत से गुजरा हो . बहुत अच्छा लिखा है . लेखिका को बधाई और हाँ इतनी खूबसूरती से ब्लॉग पर पेश करने के लिए आपको भी बधाई . ये गुर मुझे भी सिखाइए