Saturday, March 7, 2009

विरहणी यमुना


उद्धव ने गोपियों को

जब ज्ञान दिया

निराकार का ,

तब , गोपियाँ उद्धव पर

बरस पड़ीं थीं ।

उसी प्रकार

यमुना !!

तुम भी ,

कृष्ण के वियोग में

उफान रही हो ।

अपनी व्यथा को

उफनते झागों के मध्यम से

कृष्ण तक ,

पहुँचाना चाहती हो ।

बीच -बीच में पड़ते भंवर

तुम्हारी तड़फ का

वर्णन कर ही देंगे ।

गोपियों की तरह

तुम्हें भी ,

किसी माध्यम की जरूरत नही है

क्योंकि ,

यह बरसात ही

तुम्हारी व्यथा की गाथा

कहने में मदद कर रही हैं ।

किनारों पर

यहाँ -वहाँ पड़ा भाग

देखकर ही ,

कृष्ण समझ जायेंगे

कि तुमने उनके

वियोग में ,

कितनी विकलता

सहन की है

और ,

सर्द आहें भरीं हैं ।

कृष्ण तो ,

भंवरों को देखते ही

जान जायेंगे तुम्हारी ,

बेकली को ,

तड़पन , विरह और मिलन की

आतुरता का अहसास

कर ही लेंगे ।

पर , यह

जेठ की तपन

ऊपर से

वियोग की अगन

और गर्म आहों ने

तुम्हें , इतना

कृशकाय बना दिया है ।

किनारों पर पड़ी

रेत ही बता देगी

कि तुम ,

कृष्ण के वियोग में

कितनी सूख गई हो ।

तुम्हारी इठलाती

बलखाती देह

कभी ,

कदम की डाली

छूने को लालाइत होती थी ,

उठती गिरती लहरों से

जब तुम कृष्ण को

रिझातीं थीं ।

तब , राधा

डर जाती थी ,

राधा को बहा ले जाने की

कोशिश में

तुम्हें कितना शुकून मिलता था ।

तुमने कृष्ण की

बांसुरी छुपाने की

कई बार कोशिश की ,

कृष्ण के पैरों का महावर

तुम रोज ही धोया करतीं थीं ।

अब ,

वो सब कहाँ ?

तुम्हारी, धागे सी धारा

देखकर ही

कृष्ण अनुमान लगा लेंगे

कि तुम ,

पुनर्मिलन और दर्शन की

आकांक्षा से ही

जीवित हो ।

विद्या शर्मा ......

No comments: