Monday, March 9, 2009

पत्र राधा का


सावरा ,

कान्हा ,

चितचोर,

माखनचोर ,

हे मोहन !!

नीलकमल के सदृश्य इन

चरणों पर ,

मस्तक रखकर

राधा का ,

प्रणाम स्वीकारो ।

अब आगे क्या लिखूं,

हे गोविन्द !!

इस ,

बावरी राधा के

मन की व्यथा

तड़प और पुकार ,

क्या

तुम से छिपी है ?

मेरी

विवशता भी

हे माधव !!

क्या

तुमसे छिपी है ?
हे मधुसूदन !!

मेरे

दिल को तो ,

तुमने

चुम्बक की नाइ

दिल से चिपका लिया है ।

हे गोपाल !!

तुम्हें पत्र लिखती हूँ ,

राधा बनकर ,

और पढ़ती हूँ

कृष्ण बनकर ।

हे मुरलीधर !!

पत्र का जबाव देती हूँ ,

राधा बनकर ।

हे प्राण !!

मेरे पास इन पत्रों का

कोई हिसाब नहीं ।

हे परमानन्द !!

अगर कोई ,

ख़त तुम्हारे पास हो ।

तो उत्तर जरूर देना ।

हे स्याम !!

इंतजार में ,

तुम्हारी सखी ।

विद्या शर्मा ......

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