Saturday, March 7, 2009

हिमालय


तुम जानते हो ?

मैं संतरी हूँ ।

तभी तो ,

तुम्हारी रक्षा कर पता हूँ ।

और

करता ही रहूँगा ।

क्युकी ,

मेरी ऊचाई और

विशालता ने ही

मुझे मजबूर किया है ।

तुम चाहो तो ,

मेरी इस ऊचाई से

सबक ले लो ।

ऊचे और ऊचे

उठ कर ,

आसमान को छूकर ,

देखो तो ,

मैं खुशी से

नाच उठूँगा ।

मेरी तरह

ऊंचे उठकर

अडिग बन जाना,

फ़िर

विरला ही

तुम्हे छू सकेगा ।


विद्या शर्मा ...

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