Saturday, March 7, 2009

नीड़

तिनके ही तिनके
आड़े और तिरछे
आशाओं और उम्मीदों के ,
अतीत और स्मृतियों के
तिनको से बनता है नीड़ ।
अपनों और परायों के
नातों और रिश्तों से
प्यार और स्नेह के
घृणा और नफरत के
तिनको से बनता है नीड़ ।
काली सन्नाटेदार रातो के
सुनेहेरी भोर की किरणों के
तपती दुपेहेरी की तपन के
और सांझ के ,
धुंधलके के
तिनको से बनता है नीड़ ।

विद्या शर्मा ...

No comments: