Friday, March 6, 2009

पतंग


हाय पतंग !!!

तुम हो कितनी खुशकिस्मत ,

हम हैं खड़े ,

ज़मीन पर

तुम्हे मिली है जन्नत ।

तुम्हारा

शून्य में भटकना

कभी दाँय

कभी बाँय

और कभी ऊपर जाना

कभी , रूठना

कभी मचलना

और कभी गाना तेरा

भाया मेरे मन को ,

किंतु यह डोर ?

माजरा क्या है ?

नही आया पसंद ।

तो क्या

तुम्हे भी वही थामे है ?

जिसने मुझे भी थामा है ।

तो सिर्फ़

फर्क इतना है

हमें डोर ने नही

संस्कारों ने थामा है ।

विद्या शर्मा ...

No comments: