Sunday, March 8, 2009

डगर


सामने

पेड़ों के झुरमुट में

बनी झोपडी

और

बैलों से घूम घूम कर

पानी निकालने वाला रहंट ,

एक पतले पेड़ की दाल से

बंधी बकरी

और उसके तीन बच्चे ,

एक घने वृक्ष के नीचे

खरहरी खाट पर

घुटनों तक ,

मटमैली धोती पहने

लेटा है कोई ।

उसकी खिचडी हुई दाड़ी

और

चेहरे की

सलवटें ही

बताती हैं

उसकी उम्र ,

माथे की लकीरें

उसकी ,

अनुभवता और प्रौड़ता को

उजागर करने में

ज़रा भी

नही हिचकिचाती ।

वहीँ ,

कुछ दूरी पर ,

जाने वाली पगडण्डी ,

थोडी दूर तक तो

दिखाती हैं

फ़िर ,

खेतों मेडों

इधर उधर उगे

झाडों

और

बढती हुई फसल

उस

पगडण्डी को ,

आंखों से

ओझल

करके ही सुख मिला होगा ।

उनको क्या पता ,

उस पर चलने वाला

कहाँ और क्यूँ

जा रहा है ।

हर

डगर का

कहीं न कहीं

विलय है ।

पर

अंत नही ।


विद्या शर्मा ...

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