राही
जब तुम चलते हो
तब ,
तुम्हारे आगे पीछे
दांये बांये ,
कितनों को
और
कहाँ तक
साथ रखते हो ?
हे राही ॥
क्या तुम्हे पता है ?
यहाँ तक ,
साथ चलने वाला साथी
अब किस ,
रास्ते पर जायेगा
और कहाँ जायेगा ?
अभी तो ,
हे राही !!
तुम्हे कितने राही मिलेंगे
और तुम ,
उन्हें
कहाँ कहाँ तक
छोड़ते रहोगे ।
इस रास्ते पर
तुम्हारा ,
क्षणिक साथी
अपने पिता से
रूठकर या
प्रियतमा से
रूठकर चला है ।
या ,
अपनी बेरोज़गारी दूर करने,
किसी ठौर की तलाश में
जा रहा है ।
या ,
किसी का मातम मनाने ,
किसी विवाह में
शरीक होने ,
या
प्रेयसी को अपनी
वरिष्ठ भुझाओं में
समेट कर
आत्मसात करने जा रहा है ।
अरे !
तुम तो ,
इन सबसे बेखबर हो ।
क्यूंकि ,
तुम भी ,
किसी के
क्षणिक साथी हो
सोचो इस
क्षणिक मिलन और
बिछोह को
कब तक
सहें करते रहोगे ।
तुम भी तो
किसी के
क्षणिक साथी हो ।
और
राही हो ।
विद्या शर्मा ...
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