Sunday, March 8, 2009

राही


राही

जब तुम चलते हो

तब ,

तुम्हारे आगे पीछे

दांये बांये ,

कितनों को

और

कहाँ तक

साथ रखते हो ?

हे राही ॥

क्या तुम्हे पता है ?

यहाँ तक ,

साथ चलने वाला साथी

अब किस ,

रास्ते पर जायेगा

और कहाँ जायेगा ?

अभी तो ,

हे राही !!

तुम्हे कितने राही मिलेंगे

और तुम ,

उन्हें

कहाँ कहाँ तक

छोड़ते रहोगे ।

इस रास्ते पर

तुम्हारा ,

क्षणिक साथी

अपने पिता से

रूठकर या

प्रियतमा से

रूठकर चला है ।

या ,

अपनी बेरोज़गारी दूर करने,

किसी ठौर की तलाश में

जा रहा है ।

या ,

किसी का मातम मनाने ,

किसी विवाह में

शरीक होने ,

या

प्रेयसी को अपनी

वरिष्ठ भुझाओं में

समेट कर

आत्मसात करने जा रहा है ।

अरे !

तुम तो ,

इन सबसे बेखबर हो ।

क्यूंकि ,

तुम भी ,

किसी के

क्षणिक साथी हो

सोचो इस

क्षणिक मिलन और

बिछोह को

कब तक

सहें करते रहोगे ।

तुम भी तो

किसी के

क्षणिक साथी हो ।

और

राही हो ।


विद्या शर्मा ...

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