केवल तुम ही हो
माँ ,
जो , मुझे
दूसरों की नज़रों से
बचा कर
रखती है |
जब ,
छल -कपट
झूंठा व्यवहार
अपशब्द
मुझे पीड़ा देते हैं ,
तब ,
तुम ही
सांत्वना देती हो |
जब ,
तीखी ,अशिष्ट , निर्लज्ज
निगाहें मुझे ,
भयाक्रांत करती हैं
तब ,
तुम ही
आँचल में
समेत लेती हो माँ ,
अहंकार से सना
चेहरा जब ,
मुझे ,
घायल करता है
तब ,
तुम ही
मुझे , शीतल छायादार
वृक्ष की तरह
आसरा देती हो ,
माँ |
विद्धया शर्मा ..
1 comment:
maa jaisa koi nahi..
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