तुम ,
खिलते , महकते
मुस्कराते हो ,
डाल से
तोड़ने पर भी ,
व्यथित नहीं होते ,
हमारे मन को
मुदित , पुलकित
और आनंदित
करते हो ,
निष्काम , निर्द्वन्द रहकर
असीमितता
दिखाते हो ,
मौन रहकर भी
ज्ञान फैलाते हो ,
मन करता है
अपना , कलुष
तुमसे बदल लूं ,
हे सुमन !!
विद्धया शर्मा..
1 comment:
दिल को छू रही है यह कविता .......... सत्य की बेहद करीब है ..........
Post a Comment