पराजय का
बोध कराती है ,
पराजित व्यक्ति
दुखी होता है ,
दुःख और दर्द के
साये में ही ,
कभी कभी बुलंदिया भी
छू लेता है ,
जिन्हें शायद
कभी नहीं पा
सकता था ,
तभी तो ,
ध्रुव एक चमकता
सितारा बन सका ,
कालिदास भी अमर
काव्य रच सके ,
तुलसी भी ,
रामचरित की,
रचना कर सके
मैं ,
कुछ शब्दों के
जाल ही बुन रही हूँ ,
न , कभी कालिदास
बन सकुंगी
और न ,कभी
मीरा .
विद्या शर्मा ...
1 comment:
पराजय का बोध कराती है ,पराजित व्यक्ति दुखी होता है ,दुःख और दर्द के साये में ही ,कभी कभी बुलंदिया भी छू लेता है
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
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