जाने क्या -क्या ,
रिसता है ?
मेरी किसी
श्वांस ने अभी तक ,
नहीं बताया ,
उसकी तपन में
क्या -क्या घुला है ?
मीठी सी चुभन या
दर्द का सैलाव ,
आशाओं का ज्वार -भाटा या
उद्गारों का रेला ,
आकान्छाओं का बिखराव या
खुशियों का जश्न ,
उच्छवासों का दरिया
सब बहा ले जाता है ,
न , बादल गरजे ,न
बिजली चमकी
सावन से आंसूं
बरस गए ,
न , अगन बुझ सकी , न ,
भस्म बन सकी ,
झुलस गए सपने ,
उच्छवासों के
मेले में , मैं ,
समधिद्थ सी ,
तमाशा देखती रही |
विद्या शर्मा ...
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