रात ढल गई पहर -पहर
भोर भई मचल -मचल
धुप छिटक गई मुडेर -मुडेर
घड़ा लिए कमसिन चली मटक -मटक
हल -बैल चल पड़े मचक- मचक
खेत की पुराई हुई अचक -अचक
फसल हुई लहर -लहर
फूल खिले बसंती महक -महक ,
रेत जला उठी पांव गरम -गरम
छाँव को ललक रहे तरस -तरस
प्यास से गला गया चटक -चटक
तन हुआ बेदम झुलस -झुलस
पंछी छुप रहे कुटर- कुटर
बयार खोजते रहे टुकुर -टुकुर
छाँव आ चली सरक -सरक
घर लौट चले हम डगर - डगर
पंछी उड़ चले पतंग-पतंग
अमराई झुक गई लचक -लचक
उठने लगा धुआं महल -महल
दौड़ पड़े बछड़े ठुमक -ठुमक
रात आ गई द्वार -द्वार
अभिसारिका गईं संवर -संवर
बज उठीं पायल झनक- झनक
छिपा चली सारंग मटक -मटक
पंथ निहार रही अटक -पटक
बेसुध सी लौट पड़ी सुबक -सुबक |
विद्या शर्मा ...
No comments:
Post a Comment