Thursday, March 25, 2010

संध्या बेला

रात ढल गई पहर -पहर 
 भोर भई मचल -मचल 
धुप छिटक गई मुडेर -मुडेर 
घड़ा लिए कमसिन चली मटक -मटक 
हल -बैल चल पड़े मचक- मचक 
खेत की पुराई हुई अचक -अचक 
फसल हुई लहर -लहर 
फूल खिले बसंती महक -महक ,


रेत जला उठी पांव गरम -गरम
छाँव  को ललक रहे तरस -तरस 
प्यास से गला गया चटक -चटक 
तन हुआ बेदम झुलस -झुलस 
पंछी छुप रहे कुटर- कुटर 
बयार खोजते रहे टुकुर -टुकुर 


छाँव आ चली सरक -सरक 
घर लौट चले हम डगर - डगर 
पंछी उड़ चले पतंग-पतंग 
अमराई झुक गई लचक -लचक 
उठने लगा धुआं महल -महल 
दौड़ पड़े बछड़े ठुमक -ठुमक 


रात आ गई द्वार -द्वार 
अभिसारिका गईं संवर -संवर 
बज उठीं पायल झनक- झनक 
छिपा चली सारंग मटक -मटक 
पंथ निहार रही अटक -पटक 
बेसुध सी लौट पड़ी सुबक -सुबक |


विद्या शर्मा ...



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