Friday, March 5, 2010

आँचल

में ,
जब , छोटी थी 
मां !!
अपने  पांव पर 
चलने लगी थी 
तब , 
तुम्हारा  लहराता आँचल 
मुझे , आकृष्ट 
करता था ,
एक छोर पकड़कर 
खुश होती थी 
अब , जब 
बड़ी हो गई हूँ ,
जब , कभी डर 
जाती हूँ ,
बाबा की फटकार से 
तब , 
तलाशती हूँ ,
वही , आँचल 
तुम्हारा लहराता 
आँचल 
मुझे , छुपा लेता है 
अपने भीतर 
बाबा , हताश हो चले जाते 
अब ,
मेरा आँचल 
तुम्हारे जैसा 
हो गया है 
पर ,
मां !! 
मुझे, वह शकून
नहीं मिलता
आज भी ,
उसी , आँचल को 
तलाशती हूँ 
जो , मुझे 
अपने आगोश में 
छुपा ले ,
सारी परेशानियों 
चिंताओं से 
मुक्त कर दे 
अथाह शांति की 
नींद सुला दे .
विद्धया शर्मा 
 


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