Wednesday, March 24, 2010

पेड़

सामने वाला पेड़ 
खुली किताब सा है ,
पन्ने -दर -पन्ने 
पढ़ते रहो ,
मौसम जब ,
हसीं होता है ,
मोटी -मोटी डालें 
गधांश बन जाती हैं ,
पतली डालें ,
वाक्यांश बनती हैं ,
वे , मिलजुलकर 
शब्दार्थ समझतीं हैं ,
अगणित कोमल कोपलें ,
अर्नव बन ,
वेदार्थ बताती हैं ,
लटकते सूखे पत्ते ,
त्रुटियों से ,
टपक पड़ते हैं ,
इस , वृक्ष का 
कभी कोई , पृष्ठ 
पलटा नहीं गया ,
कभी , उच्चारित नहीं किया ,
गुम- सुम सा नीड़ 
लोकोक्तियाँ कहता है 
जब , 
परिंदे चहचहाते हैं ,
चिड़िया , तोता , गिलहरी 
कबूतर सब ,
भाषा की बिविधिता 
की तरह ,
मुहावरे जैसे 
बरसाते हैं ,
सामने वाले पेड़ ,
के फल -फूल 
अलंकार से 
हमारे दिल को 
गुदगुदाते हैं ,
जाने , कबसे 
यह , वृक्ष !!
हमारे आँगन में ,
साहित्य सा 
बस गया है |
विद्या शर्मा ....

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