झंझावातों के
सैलाव में ,
डूबकर भी ,
तैरती रही |
अपनों से
दूर -बहुत दूर
होती रही ,
सभी मेरे साथ
तपते रहे ,
जीवन की
भट्टी में ,
और तनहाइयों को
मथती रही |
बच्चियां भी
विदा ले चुकीं हैं ,
बंद रास्तों पर आकर
ठहर सी गई हूँ ,
बहता सा जीवन भी
एकाकी लगता है |
विद्धया शर्मा ..
1 comment:
वाह .....Renu जी गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!
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