तो ,
पौरुष दिखाओ ,
क्यों डरते हो ?
स्त्री से |
जब , होती है
किचिन में ,
पतीली में
दाल, उगलती है
भाप ,
जब , गीली लकड़ियाँ
बहाती हैं , उसके
आंसू ,
हाथ में बेलन लिए
देती है , वह
रोटी को आकार,
तब , दिखाओ न ,
पौरुष |
डरते हो न , तुम !!
जब , बच्चे करते हों परेशान
मांगते हों नास्ता ,
दूध और रोटी
तुम , ढूंढते हो
मोज़े और टाई |
तब , मर्दानगी दिखाओ न,
जाते हो , साथ में
पिक्चर
मिल जाये माशूका
तब , चश्मा लगाकर
आगे ही चलते जाते हो ,
अब , दिखाओ न,
तेवर ,
मर्द !!
औरत की बेबसी को
समझो ,
मर्दानगी के उद्गार के लिए
देश की सीमाए
बुलातीं हैं ,
वहां ,
दिखा दो , पौरुष |
विद्या शर्मा ...
1 comment:
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
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