Friday, February 27, 2015

पहली बस यात्रा

करीब ४५ बरस पहले की बात है , मैं , अपनी छोटी बहन कामायनी और उसके दो बरस के बेटे के साथ गाजियाबाद के लिए निकल पड़े , क्योंकि हमारे बड़े भाई का बच्चा गुजर गया था , उनके पास जाना जरूरी था , हम आगरा से बस में सवार हुए बस स्टैंड के लिए जो तीन किलोमीटर दूर था घर से , वहां पता चला कि खुर्जा के लिए बस है , गाजियाबाद की बस का अभी कोई पता नहीं कब आये , हम लोग उसी बस में बैठ गए , खुर्जा पहुंचकर पता चला गाजियाबाद की बस खड़ी है तब हम उसमें बैठ गए , हमारे तो होश उड़े हुए थे पता ही नहीं था कहाँ से कहाँ जायेंगे तो पास रहेगा , बच्चा साथ था , सभी राहगीरों ने हमारा साथ दिया और हम भाई के घर तक पहुँच गए। 


दो दिन वहां रुकने के बाद हम लोग वापस जाने का सोचने लगे , भाई भाभी बहुत दुखी थे , उनका बच्चा नहीं रहा था , लेकिन ईश्वर की इच्छा के सामने क्या कर सकते थे , हम लोग आगरा के लिए निकल गए , वहां से भाई ने बिठा दिया था और समझा दिया था कि कहाँ उतरना है , लेकिन अलीगढ आने पर हमने विचार किया कि कौन रोज निकलना होता है चलो बुआजी से भी मिलते चलें , हमारे पास उनका पता भी नहीं था ,बस इतना मालूम था कि उनके यहाँ ताले बनाये जाते हैं , हम अलीगढ़ पर उत्तर गए वहां से नईबस्ती के लिए रिक्शा किया लेकिन पता चला कि वहां सुरेश चन्द्र शर्मा नाम का कोई व्यक्ति नहीं रहता , रिक्शे वाला हमारे साथ ही घूमता रहा पर कुछ भी पता नहीं चला। 


तभी एक खद्दरधारी  व्यक्ति हमारे पास आये और हमारी परेशानी पूछने लगे , शाम होती जा रही थी हम अपने निर्णय पर दुखी हो रहे थे , बहुत समय से आप लोग परेशान हैं ,बताएं क्या मसला है , तब हमने उन्हें सारी कहानी बताई , सज्जन बोले - आप यहीं बैठें , मैं अभी पता लगाकर आता हूँ , नेता जी पहले तो बाजार गए ,वहां पता लगाया कि ताले कहाँ बनते हैं , पता चला कि अब उनका काम बदल गया है , बस्ती में नहीं कटरा में रहते हैं। पता लगाने में उन्हें देर हो रही थी , हम लोग परेशान थे कि आगरा भी जाना है , क्या करें ? तभी सोचा कि वापस चलते हैं , बच्चा भी दुखी करने लगा था और हम आगरा की बस में बैठ गए जो आखिरी बस थी। 


तभी , भागते हुए नेता जी आये और बोले - आपके फूफाजी का पता लग गया है , नीचे उतरें , कल चली जाना , मैं स्वयं छोड़कर आऊंगा , चिंता न करें , हमारी टिकिट वापस करवा दी , हमें एक दुकान पर बिठाकर बोले -मैं आपके घर से किसी को बुलाकर लता हूँ , आप यही बैठें , १० मिनट बाद बुआजी के बेटे के साथ वे सज्जन आये और पूछा -इन्हें पहचानती हो या नहीं , हमारे साथ घर तक गए , अगर जरूरत हो तो ,मैं ,दुकान पर ही मिलूंगा आ जाना। हम सोच रहे थे ईश्वर ने कितना ख्याल रखा हम लोगों का , पहली बार बाहर निकले थे , सभी भले लोग मिले , कोई परेशानी नहीं हुई। हम इतने मूर्ख थे कि उनका धन्यवाद भी नहीं किया , बरसो बीत गए आज भी याद आते हैं वो पल ,जब हम घर से निकल गए थे।  सभी ने अपने बच्चों सा हमारा ध्यान रखा था। 

विद्या शर्मा 

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