गुनिया की शादी जमीदार परिवार में हुई थी , १९६० में जमीदारी तो रही नहीं लेकिन उसकी ठसक बची हुई थी , दो की जगह एक सब्जी से खाने की आदत बन गई थी , रहन -सहन सब राजसी था ,लड़कियों की पढाई के लिए घर पर ही व्यवस्था की जाती थी , कॉलेज भेजने के लिए साधन उपलब्ध नहीं थे , गांव तक बस नहीं आती थी , स्वयं जा नहीं सकते थे उसके लिए वहां की सुविधा भी नहीं थी , इसलिए अधिकांश लड़कियां घर के काम में ही हाथ बटाती थीं , गुनिया की जब शादी हुई तब वो १७ बरस की थी , १८ बरस की युवा बिटिया घर में कुवारी थी , पर जमीदार साब को चिंता नहीं थी।
गुनिया की माँ ने बचपन में ही समझा दिया था कि ससुराल ही तुम्हारा घर है , वहीँ से लड़की की अर्थी उठती है , यहाँ आने पर घर के एक पुरुष से मिलना हुआ जो दो बार युद्ध में भाग ले चुके थे और अपने मैडल एक थैले में हर समय साथ रखते हैं , न जाने कब जरूरत पड़ जाय , जब अपने गांव लादूखेड़ा आते तो हम सबसे मिलने भी अवश्य आते , जब भी समय मिलता युद्ध के किस्से सुनाते रहते , कभी जब जरूरत होती तो खलिहान पर भी सोने चले जाते , उनके पास बन्दूक रहती थी , गांव वाले थोड़ा डर कर रहते थे , हर बार की छुट्टियां हम सबके पास ही निकालते थे , बच्चे दौड़ -दौड़ कर उनके काम करते थे।
मंगल बाबा एक बार नहीं आये तो सभी उनकी याद कर रहे थे , उनकी शादी नहीं हुई थी इसलिए हम लोग ही उनके बच्चे थे , एक बार आर्मी भर्ती का विज्ञापन निकला तो बाबा ने फार्म लेने के लिए लाइन में भूखे प्यासे शाम कर ली , जब नंबर आया तो बाबू से बोले - बेटा !! एक फार्म देना , बाबू ने बाहर झांक कर देखा तो एक बुजुर्ग खड़े हैं , आपकी उम्र आराम करने की है और उन्हें फार्म नहीं दिया गया। घर तो आ गए लेकिन किसी को नहीं बताया क्या हुआ था , थोड़े दिन रहकर अपने गांव चले गए।
दुसरे बरस फिर जगह निकली और बाबा फार्म लेने चले गए क्योंकि गांव में उनका मन नहीं लगता था , पहला काम किया की सर के बाल कटवा लिए , दाढ़ी मूछ साफ़ करवा ली , टोपी लगाकर लाइन में लग गए और कड़क आवाज में कहा -एक फार्म दो , बाबू ने बाहर झाँका , और बोला -आप अंदर आइये , आपको यहीं फार्म मिलेगा ,जब बाबू ने देखा कि बाबा , ने हुलिया ही बदल दिया है तब बड़े अदब से बोला - आप क्यों आर्मी में जाना चाहते हैं , अब आपकी उम्र नहीं वहां जाकर लड़ने की , तब बाबा ने उसे अपने सर्टिफिकेट और टंगे दिखा दिए और बोले अब तो फार्म देगा , बाबू , घबरा गया उठकर सलूट किया और बोला - अब देश की रक्षा करने के लिए हम हैं आप आराम करें , निश्चिन्त रहें।
शाम को बाबा घर आये और दर्द भरी कहानी सबको सुना दी क्योंकि सभी पूछ रहे थे बाल क्यों हटवाए ? अब हर सवाल का जबाव क्या देते तो बताना ही पड़ा , बाबा तो अब नहीं रहे लेकिन उनकी देश भक्ति आज भी हम सभी को उन्हें सलूट करने को बाध्य करती है। बहुत मुश्किल से मिलते हैं ऐसे जाबांज।
विद्या शर्मा
गुनिया की माँ ने बचपन में ही समझा दिया था कि ससुराल ही तुम्हारा घर है , वहीँ से लड़की की अर्थी उठती है , यहाँ आने पर घर के एक पुरुष से मिलना हुआ जो दो बार युद्ध में भाग ले चुके थे और अपने मैडल एक थैले में हर समय साथ रखते हैं , न जाने कब जरूरत पड़ जाय , जब अपने गांव लादूखेड़ा आते तो हम सबसे मिलने भी अवश्य आते , जब भी समय मिलता युद्ध के किस्से सुनाते रहते , कभी जब जरूरत होती तो खलिहान पर भी सोने चले जाते , उनके पास बन्दूक रहती थी , गांव वाले थोड़ा डर कर रहते थे , हर बार की छुट्टियां हम सबके पास ही निकालते थे , बच्चे दौड़ -दौड़ कर उनके काम करते थे।
मंगल बाबा एक बार नहीं आये तो सभी उनकी याद कर रहे थे , उनकी शादी नहीं हुई थी इसलिए हम लोग ही उनके बच्चे थे , एक बार आर्मी भर्ती का विज्ञापन निकला तो बाबा ने फार्म लेने के लिए लाइन में भूखे प्यासे शाम कर ली , जब नंबर आया तो बाबू से बोले - बेटा !! एक फार्म देना , बाबू ने बाहर झांक कर देखा तो एक बुजुर्ग खड़े हैं , आपकी उम्र आराम करने की है और उन्हें फार्म नहीं दिया गया। घर तो आ गए लेकिन किसी को नहीं बताया क्या हुआ था , थोड़े दिन रहकर अपने गांव चले गए।
दुसरे बरस फिर जगह निकली और बाबा फार्म लेने चले गए क्योंकि गांव में उनका मन नहीं लगता था , पहला काम किया की सर के बाल कटवा लिए , दाढ़ी मूछ साफ़ करवा ली , टोपी लगाकर लाइन में लग गए और कड़क आवाज में कहा -एक फार्म दो , बाबू ने बाहर झाँका , और बोला -आप अंदर आइये , आपको यहीं फार्म मिलेगा ,जब बाबू ने देखा कि बाबा , ने हुलिया ही बदल दिया है तब बड़े अदब से बोला - आप क्यों आर्मी में जाना चाहते हैं , अब आपकी उम्र नहीं वहां जाकर लड़ने की , तब बाबा ने उसे अपने सर्टिफिकेट और टंगे दिखा दिए और बोले अब तो फार्म देगा , बाबू , घबरा गया उठकर सलूट किया और बोला - अब देश की रक्षा करने के लिए हम हैं आप आराम करें , निश्चिन्त रहें।
शाम को बाबा घर आये और दर्द भरी कहानी सबको सुना दी क्योंकि सभी पूछ रहे थे बाल क्यों हटवाए ? अब हर सवाल का जबाव क्या देते तो बताना ही पड़ा , बाबा तो अब नहीं रहे लेकिन उनकी देश भक्ति आज भी हम सभी को उन्हें सलूट करने को बाध्य करती है। बहुत मुश्किल से मिलते हैं ऐसे जाबांज।
विद्या शर्मा
No comments:
Post a Comment