उत्तर -प्रदेश का गांव राजपुर हम लोग किसी रिश्तेदार की शादी में ताई के साथ गए थे , उस समय मैं , आठ बरस की रही होउंगी , बड़ा सा कच्चा घर था , आँगन इतना बड़ा था कि पूरी बारात एक साथ खाना खा ले , लड़की की शादी में उस दिन दावत थी , पहले तीन से चार दिन में बारात विदा होती थी। दावत चल रही थी जिसमें कई मिठाइयां , पूरी , सब्जी , दही बूरा , रायता सब शामिल था , आने वाले लोग ब्लास्त से नाप कर पूरियां खाते थे , दावत खा कर लोग उठे तभी , शोर मचा कि किसी का जूता चोरी हो गया , जो उस समय के हिसाब से कीमती था।
जूता खोने से रिश्तेदार तो जैसे आपे से बाहर होते जा रहे थे , दुःख इसलिए अधिक था क्योंकि जूता पड़ोस के गांव के एक ऐसे लड़के के थे जिसकी शादी दस दिन पहले ही हुई थी , जूता मांगने वाला उसका दूर का भाई था , उस समय जूता उधार मांग कर काम चलाया जाता था , कभी छोटा जूता या बड़ा जूता भी चल जाता था , जूते उधार मांग कर स्वाफी में लपेट कर उत्सव तक जाते थे , वहीँ जाकर पहन लेते थे , हर कोई की हैसियत नहीं होती थी कि जूते पहन सके , इसलिए यूँ ही काम चलाया जाता था। दूसरे का जूता होता था तो हिफाजत भी की जाती थी , जूता क्या खोया कोहराम मच गया , सुख -चैन , खाया पीया सब बेकार हो गया , सब जगह खोजने के बाद भी जूता नहीं मिला।
जिसने जूते पर हाथ साफ़ किये थे वो तो , पहले ही निकल गया था , लड़की के भाई ने आस्वासन दिया हम जूते का पता लगवाएंगे , जूता अपना होता तो और बात थी , मांगे का जूता बेचैन किये था , सब जगह उसे जूता ही नज़र आ रहा था , किसी से कह भी नहीं सकता था कि जूता मेरा नहीं किसी और का है। जूता मिलना तभी संभव था जब उसी गांव में किसी की शादी हो , सबको पता था जूता चोरी करना कोई हंसी नहीं है , लड़की के भाई ने अपने दोस्तों को खोज में लगा दिया , हिदायत दी गई कि जूता देखते ही बताया जाय।
दो माह के भीतर ही एक शादी का आयोजन होने वाला था , सबकी नज़रें लगी थीं कि कौन जूते पहनकर आता है , गांव के जमीदार के घर शादी थी , नए जूते खरीदने की औकात ही नहीं थी तो खोज बीन ही की जा सकती थी , दावत शुरू हो चुकी थी , उसकी निगाहें जूतों को ही खोज रहीं थीं , तभी भाई के दोस्त ने बताया भाई !! जूते तो जमीदार का रिश्तेदार पहने है , तभी यह तय हुआ कि चुपचाप जूते लेकर जाओ जिसके थे वापस करो , स्वाफी में जूते बांधकर दावत का भरपूर मजा लिया और गांव जाकर दोस्त को जूते वापस किये क्षमा याचना के साथ। उस दिन से यह गांठ बाँध ली कि अब किसी से उधार कुछ भी नहीं लिया जायेगा। इस तरह जूतों का किस्सा ख़त्म हुआ।
विद्या शर्मा
जूता खोने से रिश्तेदार तो जैसे आपे से बाहर होते जा रहे थे , दुःख इसलिए अधिक था क्योंकि जूता पड़ोस के गांव के एक ऐसे लड़के के थे जिसकी शादी दस दिन पहले ही हुई थी , जूता मांगने वाला उसका दूर का भाई था , उस समय जूता उधार मांग कर काम चलाया जाता था , कभी छोटा जूता या बड़ा जूता भी चल जाता था , जूते उधार मांग कर स्वाफी में लपेट कर उत्सव तक जाते थे , वहीँ जाकर पहन लेते थे , हर कोई की हैसियत नहीं होती थी कि जूते पहन सके , इसलिए यूँ ही काम चलाया जाता था। दूसरे का जूता होता था तो हिफाजत भी की जाती थी , जूता क्या खोया कोहराम मच गया , सुख -चैन , खाया पीया सब बेकार हो गया , सब जगह खोजने के बाद भी जूता नहीं मिला।
जिसने जूते पर हाथ साफ़ किये थे वो तो , पहले ही निकल गया था , लड़की के भाई ने आस्वासन दिया हम जूते का पता लगवाएंगे , जूता अपना होता तो और बात थी , मांगे का जूता बेचैन किये था , सब जगह उसे जूता ही नज़र आ रहा था , किसी से कह भी नहीं सकता था कि जूता मेरा नहीं किसी और का है। जूता मिलना तभी संभव था जब उसी गांव में किसी की शादी हो , सबको पता था जूता चोरी करना कोई हंसी नहीं है , लड़की के भाई ने अपने दोस्तों को खोज में लगा दिया , हिदायत दी गई कि जूता देखते ही बताया जाय।
दो माह के भीतर ही एक शादी का आयोजन होने वाला था , सबकी नज़रें लगी थीं कि कौन जूते पहनकर आता है , गांव के जमीदार के घर शादी थी , नए जूते खरीदने की औकात ही नहीं थी तो खोज बीन ही की जा सकती थी , दावत शुरू हो चुकी थी , उसकी निगाहें जूतों को ही खोज रहीं थीं , तभी भाई के दोस्त ने बताया भाई !! जूते तो जमीदार का रिश्तेदार पहने है , तभी यह तय हुआ कि चुपचाप जूते लेकर जाओ जिसके थे वापस करो , स्वाफी में जूते बांधकर दावत का भरपूर मजा लिया और गांव जाकर दोस्त को जूते वापस किये क्षमा याचना के साथ। उस दिन से यह गांठ बाँध ली कि अब किसी से उधार कुछ भी नहीं लिया जायेगा। इस तरह जूतों का किस्सा ख़त्म हुआ।
विद्या शर्मा
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