परीक्षा समाप्त होते ही हम लोग पैतृक गांव चावली चले जाया करते थे , पिताजी ही छोड़कर जाते थे , गांव में ताऊजी राम दयाल शर्मा अपनी पत्नी के साथ रहा करते थे , ताऊजी का एक बेटा था जो कानपुर में हमारे साथ ही रहता था , वहीँ पढ़ते भी थे हमें गांव में दो महीने के लिये छोड़ दिया जाता था।
एक दिन सो कर उठे तो पता चला कि ताऊजी टूंडला गए हैं , उनके जिगरी दोस्त पास के गांव चिरौली से आये थे ,आज उन्हें सायकिल खरीदनी थी ,उस समय न तो सड़क थीं और न ही आने जाने के लिये कोई साधन होते थे अतः सुबह अँधेरे ही निकलना पड़ता था। अगर पहले से पता हो कि जाना है तो दो चार पराठे अचार के साथ रख लिए जाते थे लेकिन ताऊजी को अचानक जाना पड़ा तो नास्ता रखने का प्रश्न ही नहीं होता। गर्मी से बचने के लिए सुबह ही निकल गये।
धूप चढ़ते ही वे टूंडला पहुँच गए , दुकान अभी नहीं खुली थी तो किसी पेड़ के नीचे विश्राम करना पड़ा , हवा का झोंका लगा तो सो गए , गिरिवर जी ने करबट ली तो देखा ताऊजी के अंगोछे पर कुत्ता सो रहा है , अरे !!! ठेकेदार !! उठो कुत्ता तुम्हारे संग सो रहो है ,ताऊजी गांव की हाट का ठेका लेते थे इसलिये सभी लोग उन्हें ठेकेदार कहते थे , दोनों सायकिल की दुकान पर पहुँच गए , कीमत १३ रुपये जो आठ साल पहले १० रूपये थी , अच्छा अंधेर है हमारा भाई १० की ले गया था। गिरिवर ने मन पक्का किया और सायकिल ले ली।
सायकिल कसाई गई क्योंकि सभी हिस्से अलग -अलग ही मिलते थे , रसीद भी दे दी गई , सायकिल लेकर बाहर आ गए , ताऊजी खुश थे कि अब पैदल नहीं चलना पड़ेगा ,चलो गिरिवर !! जल्दी गांव पहुंचे वरना धूप तेज हो जाएगी ,हाँ -और सायकिल को सर पर रखकर चल दिए , अरे !! ये क्या करते हो ? सायकिल पर ही चलते हैं , का कह रहे हो ठेकेदार !! नई सायकिल है ,चलो बेग , और आगे -आगे चल दिए ताऊजी मन मारकर उनके साथ चल दिए।
तीन चार किलोमीटर चलने के बाद एक गांव मैं ही गिरिवर रुके ,वहां पानी पीया थोड़ी देर विश्राम किया , सायकिल देखने के लिए वहां भी भीड़ लग गई , गांव वाले भी बोल रहे थे सायकिल से जाओ पर गिरिवर जी पर कोई असर नहीं पड़ा , नाय सायकिल के पहिया अभी ते घिस जायेंगे ,वे नहीं माने। सायकिल सिर पर रखकर गिरिवर आगे -आगे ताऊजी पीछे -पीछे थके हुए चल रहे थे। जब गांव के खेत दिखे तब ताऊजी ने कहा अब , तो सायकिल से चलो , लोग क्या कहेंगे , पर गिर्रा तो फिर भी न माना और घर के चबूतरे पर सायकिल उतार कर निढाल होकर गिर गए , चिरौली तो अभी और चार किलोमीटर जाना था तो गिरिवर वहीँ पसर गए। चबूतरे पर लोगों की भीड़ थी सायकिल देखने के लिए।
विद्या शर्मा
एक दिन सो कर उठे तो पता चला कि ताऊजी टूंडला गए हैं , उनके जिगरी दोस्त पास के गांव चिरौली से आये थे ,आज उन्हें सायकिल खरीदनी थी ,उस समय न तो सड़क थीं और न ही आने जाने के लिये कोई साधन होते थे अतः सुबह अँधेरे ही निकलना पड़ता था। अगर पहले से पता हो कि जाना है तो दो चार पराठे अचार के साथ रख लिए जाते थे लेकिन ताऊजी को अचानक जाना पड़ा तो नास्ता रखने का प्रश्न ही नहीं होता। गर्मी से बचने के लिए सुबह ही निकल गये।
धूप चढ़ते ही वे टूंडला पहुँच गए , दुकान अभी नहीं खुली थी तो किसी पेड़ के नीचे विश्राम करना पड़ा , हवा का झोंका लगा तो सो गए , गिरिवर जी ने करबट ली तो देखा ताऊजी के अंगोछे पर कुत्ता सो रहा है , अरे !!! ठेकेदार !! उठो कुत्ता तुम्हारे संग सो रहो है ,ताऊजी गांव की हाट का ठेका लेते थे इसलिये सभी लोग उन्हें ठेकेदार कहते थे , दोनों सायकिल की दुकान पर पहुँच गए , कीमत १३ रुपये जो आठ साल पहले १० रूपये थी , अच्छा अंधेर है हमारा भाई १० की ले गया था। गिरिवर ने मन पक्का किया और सायकिल ले ली।
सायकिल कसाई गई क्योंकि सभी हिस्से अलग -अलग ही मिलते थे , रसीद भी दे दी गई , सायकिल लेकर बाहर आ गए , ताऊजी खुश थे कि अब पैदल नहीं चलना पड़ेगा ,चलो गिरिवर !! जल्दी गांव पहुंचे वरना धूप तेज हो जाएगी ,हाँ -और सायकिल को सर पर रखकर चल दिए , अरे !! ये क्या करते हो ? सायकिल पर ही चलते हैं , का कह रहे हो ठेकेदार !! नई सायकिल है ,चलो बेग , और आगे -आगे चल दिए ताऊजी मन मारकर उनके साथ चल दिए।
तीन चार किलोमीटर चलने के बाद एक गांव मैं ही गिरिवर रुके ,वहां पानी पीया थोड़ी देर विश्राम किया , सायकिल देखने के लिए वहां भी भीड़ लग गई , गांव वाले भी बोल रहे थे सायकिल से जाओ पर गिरिवर जी पर कोई असर नहीं पड़ा , नाय सायकिल के पहिया अभी ते घिस जायेंगे ,वे नहीं माने। सायकिल सिर पर रखकर गिरिवर आगे -आगे ताऊजी पीछे -पीछे थके हुए चल रहे थे। जब गांव के खेत दिखे तब ताऊजी ने कहा अब , तो सायकिल से चलो , लोग क्या कहेंगे , पर गिर्रा तो फिर भी न माना और घर के चबूतरे पर सायकिल उतार कर निढाल होकर गिर गए , चिरौली तो अभी और चार किलोमीटर जाना था तो गिरिवर वहीँ पसर गए। चबूतरे पर लोगों की भीड़ थी सायकिल देखने के लिए।
विद्या शर्मा
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